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Book Cover अरु ज़िन्दगी

बातें किताबें: “अरु ज़िन्दगी” मैंने सोचा था,तुम मुझे मुड़कर एक बार तो देखोगी….

हाल में प्रकाशित अरविंद जी का कविता संग्रह अरु ज़िन्दगी एहसासों का एक आर्काइव है, इसे जब मैंने खोला तो खुद को वहां पाया जहां हम होते तो हर रोज़ है पर खुद और दुनियादारी में इतने मगन होते हैं की इसपर ध्यान नहीं दे पाते| अरविंद सक्सेना जी की कविताओं में आप खुद को जी सकते हैं, कई बार कविता के साथ सफर करते हुए आप कहीं किसी निकट भविष्य में पहुंच जाते हैं तो कभी ठहर कर अपने अतीत को हवाओं में घुला हुआ महसूस करते हैं। ये कविताएं वो बातें हैं जो अक्सर हम कभी मैसेज में तो कभी मन में लिखकर मिटा देते हैं, लेकिन कभी किसी तक पहुंचा नही पाते।

अरविंद जी की कविताएं एक तरह का कम्युनिकेशन है

अरविंद जी की कविताएं एक तरह का कम्युनिकेशन है वो कम्युनिकेशन जो हम अपने अपनो से कई बार करते तो हैं लेकिन सिर्फ एहसासों में लफ़्ज़ों में नहीं…. उन्होंने अपनी कविता में अपने आसपास के हर चरित्र को जिया है और उन्हें पढ़ते हुए हम भी हर किरदार, हर चरित्र, हर हालात को जाने – अनजाने जी लेते हैं। उनकी कविता “पिता”, माँओं पर लिखी हुई कई कविताओं के बीच के एक खालीपन को भर देती हैं…

उनकी कविता “पिता” को आप यहां पढ़ सकते हैं-

कभी अभिमान तो कभी स्वाभिमान है पिता,

कभी धरती तो कभी आसमान है पिता,

जनम दिया है अगर माँ ने, जानेगा जिससे जग वो पहचान है पिता

कभी काँधे पे बिठा कर मेला दिखाता है पिता,

कभी बनके घोडा घुमाता है पिता,

माँ अगर पैरो पे चलना सिखाती है,

तो पैरो पे खड़ा होना सिखाता है पिता

कभी रोटी तो कभी पानी है पिता,

कभी बुढ़ापा तो कभी जवानी है पिता,

माँ अगर है मासूम सी लोरी,

तो कभी न भूल पाओ वो कहानी है पिता,

कभी हंसी तो कभी अनुशाशन है पिता,

कभी मौन तो कभी भाषण है पिता,

माँ अगर घर में रसोई है,

तो चलता है जिससे घर वो राशन है पिता,

कभी ख्वाबों को पूरी करने की जिम्मेदारी है पिता,

कभी आंसुओं में छिपी लाचारी है पिता,

माँ गर बेच सकती है जरुरत पे गहने,

तो जो अपने को बेच दे वो व्यापारी है पिता,

कभी हंसी और ख़ुशी का मेला है पिता,

कभी कितना तनहा और अकेला है पिता,

माँ तो कह देती है अपने दिल की बात,

सब कुछ समेट के आसमां सा फैला है पिता,

कभी घर पे पहरा है पिता,

कभी सर पे सेहरा है पिता,

माँ गर है विशाल हृदय वाली धरती तो,

समुन्द्र से गहरा है पिता…

अरविंद सक्सेना जी को उनकी पहली किताब के लिए बहुत बहुत बधाई!! हम उम्मीद करते हैं कि उनका अगला संग्रह जल्द प्रकाशित हो। अरु ज़िन्दगी को आप यहाँ क्लिक करके आर्डर कर सकते हैं।

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